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शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

गणेशाय नम :

                                                   
          गणेश -स्तुति 
गणानां  त्वा  गणपतिं  हवामहे ,
प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे। 
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम ,
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम् । ।

अमृत वचन 
दुःख क्रोध पर उद्वेग नही , सुख में जो निस्ग्रह रहता  है। 
भय ,क्रोध ,राग हो गये नष्ट , स्थिर बुद्धि वही नर होता है। । 
शुभ अशुभ वस्तु को पाकर ,जो राग द्वेष नही करता है। 
वह स्नेहरहितयोगिमानव , स्थिर बुद्धि जगत में होता है। । 
ज्यों कछुआ अपने अंगों को,अपने में समेटे रहता है। 
विषयों से अपनी इन्द्रियों को, स्थिर बुद्धि खींचे रहता  है।। 

दोहावली 
कटु -- वचनों की धार से , बने जीभ तलवार। 
अच्छा है चुप ही रहें ,मौन आधार। । 

     भावार्थ    --        हमारे अपने  वचन ही हमारी जीभरूपी  तलवार 
              बन जाती है। इसलिए अच्छाई इसी में है कि हम 
                     चुप रहें ,हमारा आधार मौन हो जाए। भलाई भी इसी
 में है और नीति भी यही कहती है
 
राधे कृष्णा

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