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रविवार, 27 सितंबर 2015

मेढ़की का दर्द

मेढ़की  का दर्द

बरसात का मौसम था। आसमान में बादल घिरे हुए थे। पर पानी न होने की वजह से उमस कुछ   ज्यादा  ही बढ़ रही थी। आधी रात होने को होने को आई , मै जैसे- तैसे करवट बदल-बदलकर नींद को अपना अपना बनाने की कोशिश कर रही थी। तभी अचानक मुझे किसी के सिसकने की आवाज सुनाई दी। हाथ में टॉर्च लिए मै बिस्तर उठी और धीरे-धीरे आवाज (सिसकने) की  दिशा की ओर बढ़ी तो देखी की एक मेढ़क कुँए की भीत (दीवार) से दुबककर रो रहा है। 
   उसको रोते देख मैं पूछ बैठी  ,  क्यों रो रहे हो मेढ़क भैया और आपके शरीर पे ये रंग किसने डाला ?
तो वो झुझलाकर बोला , इतना भी नहीं समझ सकी  कि  मै मेढक नहीं मेढकी हूँ। मेरे शरीर पे ये कोई रंग नहीं सिंदूर है और  मेरी ये हालत तुम्हारी ही विरादरी के लोगो ने की है। 
तुम तो अपने बेटे - बेटियों की शादी बड़ी सोच-बुझ के, सुयोग्य वर ढूंढ के बड़े धूम-धाम से करते हो , फिर मेरी शादी एक शराबी मेंढ़क से जबरदस्ती कैसे करवा दीया। क्या वो मेरा ख्याल रख पायेगा ? क्या वो शराबी अपनी शराब के आगे मेरी खुशियो को समझेगा ? और तुम्हे तो ये भी नहीं मालूम की मै  पहले से ही शादी-शुदा हूँ ,मेरे तीन-तीन बच्चे है। क्या होगा उनका?मेरी हालत तो तुमलोगो ने धोबी के कुते जैसी कर दी।  न घर का, न घाट का। 
('दरअसल जब बारिश के दिनों  में बरसात नहीं होती तो कुछ अंधविश्वासी लोग ऐसे फिजूल कदम उठाते है।  उनका मानना होता है कि  मेढक और मेढकी की शादी कराने से बरसात जरूर होती है। ')
                  मेढ़की अपनी शरीर को उलट-पलटकर अपने शरीर पे लगे सिंदूर को गिराने की कोशिस कर रही थी। मैंने उसकी मदद के लिए अपनी हाथ बढ़ानी चाही तो वो फिर गुस्से से भर गई और पूरी ताकत लगाकर बोली -------------------
छूना मत मुझे!    इस धरती पर बुद्धिजीवी प्राणियों में गिनती होती है न तुम्हारी, इतना तो पता है न की हमारी  प्रजाति के जीव अपनी त्वचा से साँस लेते है। मुझे साँस लेने में कितनी परेसानी हो रही है ये तुम क्या जानो। .......
हमरी सांसे छीनकर तुमलोग अपनी ख़ुशी की कामना कैसे कर सकते हो ? अगर खुश ही रहना चाहते हो तो सजाओ इस प्रकृति की खूबसूरती को जो तुम्हारे और हमारे जीने के आधार है। यह कहते -कहते मेढ़की की सांसे रुक गई। यह देखकर मेरी हाथो से टॉर्च छूटकर जमींन पर गिर गया। जिससे टॉर्च का बल्ब टूट गया।
टार्च के बंद होते ही मै चारो तरफ से घने अंधेरो से घिर गई। उन अंधेरो के साथ ऐसा लग रहा था जैसे मानो मेढ़की ये सन्देश दे रही हो की , अगर इस प्रकृति से हम ऐसे ही खेलते रहे तो कल सारी दुनिया ऐसे ही अंधकारमय हो जाएगी।
ये पेड़ -पौधे , फूल कालियाँ , नदी -झील ये जीव-जंतु , खुशिया बाटती ये मदमस्त हवाये। यही इस प्रकृति की सुंदरता है  और यही इसकी संतुलन के आधार। हमें हमेशा इनकी सुरक्षा को तत्पर  रहना चाहिए। 
तो आइये आज से मिलकर कोशिस करे  अपने लिए ,अपनी आने वाली पीढ़ी  लिए ,इस प्रकृति के लिए--- कि हमारी वजह से एक भी पेड़ न कटे बल्कि छोटा हो या बड़ा पर एक पेड़ हो हमारे नाम का। "इतना तो हम सोच ही सकते है की--------------------------
" क्यों काटे इनको इस बेदर्दी से, दर्द इनको भी होता है।
 साँसे इनकी भी रूकती है ,दिल इनका भी रोता है। 
 करके सीना छलनी इनका, क्या हम यहाँ जी पाएंगे।
जो मरेंगे  इनको खंजर , तो हम भी मर जायेंगे।


राधे कृष्णा

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