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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

वर्तमान समय मे श्रीमद भागवत गीता की उपयोगिता

    भागवत गीता

वर्तमान समय मे श्रीमद भागवत गीता की उपयोगिता 

अच्छाई और बुराइ सर्वथा से ही इस संसार मे रही है। सतयुग जिस समय भगवान राम थे उस समय भी उन्हे रावण रूपी बुराई का सामना करना पढ़ा था। अध्यात्म या ईश्वर का मार्ग हमे सदैव यह प्रेरणा देते रहे है की बुराई कही पर भी हो हमे उसका विरोध करना चाहिए। लेकिन याद रखे हर व्यक्ति का अपना एक सामर्थ्य होता है। और हमे उसी अनुरूप कार्य करना चाहिए। आप अपने सामर्थ्य के अनुरूप हर बुराई का विरोध कर सकते है। परंतु सदैव ही अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करे। बुराई कही भी हो सकती है, समाज मे, अपनो मे या अपने आप मे कही भी। कही भी हो परंतु हर जगह आपका यह कर्तव्य बनता है की आप उससे लड़े। डटकर लढ़े। किन्तु कभी आप अपने अहंकार या भावनात्मक लगाव के कारण अपने आप को अच्छाई की राह से ना हटाये और अपने अंदर की बुराई से हार ना जाए। आज देश इस परिस्थिति मे है की उसे हर क्षेत्र मे अर्जुन चाहिए। जो अपने कर्मो को हर स्तर पर पूरी निपुणता से निभाए। आज आप अर्जुन है, आप वो अर्जुन है, जो शिक्षक भी है, इंजीनियर भी है, चिकित्सक भी है और एक मजदूर भी है। आज का हर अर्जुन अपने आप मे एक विधा लिए हुए है। बात समझने भर की है । हर इंसान मे अनेकों अच्छाईया और बुराई होती है। परंतु हमारा सदैव यह प्रयत्न होना चाहिए की हम उन बुराइयों से दूर होते जाये। हमारे पास वो महान ग्रंथ भगवत गीता है जो खुद को पवित्र बनाना सिखाता है। यह सासवत सत्य है की हम जीतने ज्यादा पवित्र होंगे उतना हम अपने अंदर की बुराइयों को हराते जायेंगे। आज देश बहुत ही विषम परिस्ताथियों से गुजर रहा है। जीवन के हर क्षेत्र मे हमे ना जाने कितने कौरवो और कंस से सामना करना पढ़ रहा है। इनका कुछ न कुछ भाग हमारे अंदर भी है। हम अपने आप मे अर्जुन भी है तो कही ना कही हम मे दुर्योधन भी छुपा है। हमारे अंदर छुपा दुर्योधन आज इस देश के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। क्या किया जाय, अब समय आ गया है की अपने अंदर छुपे इस दुर्योधन को और अपने समाज मे उपस्थित कौरवो की सेना के विरुद्ध खड़ा हुआ जाये, लढा जाये। लढने का अर्थ हिंसा नहीं है। लड़ने से तात्पर्य यह है की ईश्वर की कृपा से जिस भी कर्म का निष्पादन करने आपको मिला है आप उसे पूरी निष्ठा और लगन से करे। जिस प्रकार अर्जुन धनुर्विद्या मे निपुण एक क्षत्रिय थे, तथा भगवान कृष्ण ने उन्हे अपने कर्म को करने कहा उसी प्रकार आप भी अर्जुन है, आप भी किसी ना किसी विधा मे निपुण है, तो आपका भी यह कर्तव्य बनता है की आप उस विधा का प्रयोग भलीभाँति करे। यदि आप एक मजदूर है, एक बाबू है, एक सिपाही है, जो भी है यह आपको ईश्वर द्वारा प्रदत्त कर्म करने का अवसर है। यदि आप इसे नहीं कर पायेंगे तो, आप को इस संसार मे कही ना कही अपयश का सामना करना पढ़ेगा। हमे अपने कर्म को लेकर किसी भी प्रकार से विवश होने की आवश्यकता नहीं है। जब अर्जुन अधर्म के विरुद्ध युद्ध मे भावुक होकर निर्बल होने लगे तो श्रीकृष्ण उनसे कहते है, जो की अध्याय दो के विभिन्न श्लोको मे वर्णित है:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि

 भावार्थ : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो॥
कर्म मे कितनी शक्ति होती है आपको नहीं पता। एक व्यक्ति का कर्म पूरे विश्व को सकारात्मक ऊर्जा दे सकता है नहीं तो उसे नकारात्मक ऊर्जा से बर्बाद भी कर सकता है। कर्म की शक्ति के कुछ उदारन आपको देता हु। थॉमस अल्वा एडीसन ने कर्म किया था एक बल्ब बना कर और उसके कर्म का परिणाम आज भी दुनिया को मिल रहा और वर्षो तक मिलता रहेंगा। अल्बर्ट कलमेटे ने बीसीजी टीके जो टीबी के लिए होता है, का आविष्कार फ्रांस मे किया और जिनके कर्मो का परिणाम आज हमारे लिए वरदान है, और जब तक विश्व रहेगा उनका नाम रहेगा। ना जाने कितने ऐसे आविष्कार है जो हमारे लिए वरदान है। आज हमे भी ऐसे ही कर्म की आवश्यकता है, अपने देश के लिए अपने आप के लिए । जो कर्म वैदिक युग मे हमारे ऋषि मुनियो ने किया था और जिसका आज भी हम गुणगान करते है, वही कर्म आज हमे फिर से करना है। आज हमे ऐसा बनने की जरूरत जिसे सिर्फ हमारा वर्तमान नहीं हमारे आने वाले पचासों पीढ़ियो तक याद रखा जाये।
 याद रखिए आज हमारे देश को आपके सकारात्मक और निष्ठावान कर्म की अत्यधिक जरूरत है। ऐसा जरूरी नहीं है की आप जो अपने देश के लिए अपने आप के सुधार के लिए आज प्रयास करेंगे उसका फल आप को आज ही मिल जाये। याद रखिए गीता मे कहा गया।


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राधे कृष्णा

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