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शनिवार, 12 सितंबर 2015

प्रेम का स्वरूप

जय श्री कृष्णा
प्रेम का स्वरूप 
प्रेम तो लोग एक दूसरे से करते है लेकिन प्रेम का अर्थ नही समझ पाते है ,श्री कृष्ण जी ने राधा जी से प्रेम  किया था । लेकिन राधा जी भी वैसा प्रेम की थी जो आज पूरा दुनिया जानता है पर राधा जी को कृष्ण जी नही मिले थे। पर वो हमेशा राधा जी के साथ रहते थे। आज का दुनिया में प्रेम को पाना ही प्रेम समझता है। प्रेम तो पुरे सृष्टि में फैला हुआ है
जो पशु पंछी को भी प्रिय लगता है। लेकिन आज का समाज वासना को ही सच्चा प्रेम समझता है। वास्तव में देखा जाये तो प्रेम करना कोई गुना नही होता हैपर प्रेम का कोई दुरूपयोग करना ही गुना होता है।
भगवान ने इस सृष्टि पर आकर प्रेम की परिभाषा सिखाये।  की एक आत्मा को परमात्मा में मिलाना। 
सच्चा प्रेम वह होता है जिस प्रेम में तड़प होता है ,
प्रेम का सार होता है एक दूसरे की भावना को समझना ,एक दूसरे की दिल की बात जानना बिना बताये। 
भगवान कृष्ण जी जब मुरली मधुर धुन से बजाते थे। तब राधा सहित सारी गोपिया काम छोड़कर जैसे तैसे आ जाती थी। लेकिन भगवान कृष्णा ये नही देखते थे की वो किस अवस्था में है वे तो आत्मा में प्रेम के स्वरूप को देखते थे। आज का जमाना सुंदरता के  पीछे पागल है। 
इसलिए प्रेम ऐसा करना चाहिए। जिससे किसी की तकलीफ  समझ सके। कष्ट को दूर कर सके 
नके विचार अगर गलत भी हो तो अपने पवित्र प्रेम से उनक विचारो को बदल सके सके, 
प्रेम की राह पर चलना जीवन की सबसे बड़ी सघर्ष करना होता है। 

भजन 
श्याम हमारे दिल से पूछो कितना तुमको याद किया 
याद में मोहन मुरली वाला जीवन अपना सुधार लिया 
भूल हुई,  इस दिल में बिठाया इस दिल से लाचार हुए 
श्याम हमारे …………
मीठी मीठी मुरली ने मेरे  मन को मोह लिया 
तूने तो तड़पाना सीखा ,कब तू दर्शन दोगे। 
आ जाओ दर्शन दो कान्हा ,नही तो मै  पत्थर बन जाऊ 
तेरी मुरली ने पागल बनाया ,अब क्या देर बाकि है। 
श्याम हमारे …………
श्याम हमारी आँखों में आँसु बनकर आते हो 
अब ना हमको तड़पाओ ,आ जाओ दर्शन दो 
तुम तो सबका प्रेमी बन जाते हो ,कब मेरा प्रेमी 
बनकर आओगे ,
श्याम हमारे ............... 
कान्हा तू तो मन है मेरा , मेरी हर सांसो में तू ही है। 
जब जब कान्हा दिल डकता है तब सोचती हु 
तेरा दर्शन होगा । । 
श्याम  हमारे दिल से पूछो .............
 

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