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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

सुखी और श्रेष्ठ जीवन

 सुखी और श्रेष्ठ जीवन के लिए शास्त्रों में कई नियम और परंपराएं बताई गई हैं। इन नियमों और परंपराओं का पालन करने पर अक्षय पुण्य के साथ ही धन-संपत्ति की प्राप्त होती है, भाग्य से संबंधित बाधाएं दूर हो सकती हैं। यहां जानिए एक श्लोक जिसमें ६  ऐसे काम बताए गए हैं जो भाग्य को भी बदल सकते हैं I

विष्णुरेकादशी गीता तुलसी विप्रधेनव:।
असारे दुर्गसंसारे षट्पदी मुक्तिदायिनी।।

इस श्लोक में 6 बातें बताई गई हैं, जिनका ध्यान दैनिक जीवन में रखने पर सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो सकती हैं।



1. भगवान विष्णु का पूजन करना
इन 3  बातों में पहला काम है भगवान विष्णु की पूजा करना। भगवान विष्णु परमात्मा के तीन स्वरूपों में से एक जगत के पालक माने गए हैं। श्रीहरि ऐश्वर्य, सुख-समृद्धि और शांति के स्वामी भी हैं। विष्णु अवतारों की पूजा करने पर धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष, सब कुछ प्राप्त हो सकता है।

2. एकादशी व्रत करना
इस श्लोक में दूसरी बात बताई गई है एकादशी व्रत। ये व्रत भगवान विष्णु को ही समर्पित है। हिन्दी पंचांग के अनुसार हर माह में 2 एकादशियां आती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। दोनों ही पक्षों की एकादशी पर व्रत करने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। आज भी जो लोग सही विधि और नियमों का पालन करते हुए एकादशी व्रत करते हैं, उनके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।


3. श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करना
मान्यता है कि श्रीमद् भागवत गीता भगवान श्रीकृष्ण का ही साक्षात् ज्ञानस्वरूप है। जो लोग नियमित रूप से गीता का या गीता के श्लोकों का पाठ करते हैं, वे भगवान की कृपा प्राप्त करते हैं। गीता पाठ के साथ ही इस ग्रंथ में दी गई शिक्षाओं का पालन भी दैनिक जीवन में करना चाहिए। जो भी शुभ काम करें, भगवान का ध्यान करते हुए करें, सफलता मिलने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।.......

Image result for तुलसी की देखभाल करना घर में तुलसी होना शुभ और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है, ये बात विज्ञान भी मान चुका है। तुलसी की महक से वातावरण के सूक्ष्म हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। घर के आसपास की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। साथ ही, तुलसी की देखभाल करने और पूजन करने से देवी लक्ष्मी सहित सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त होती है

ऐसे करें तुलसी की खेती और अरहर की बुवाई


पुरानी मान्यताओं के अनुसार ब्राह्मण सदैव आदरणीय माने गए हैं। जो लोग इनका अपमान करते हैं, वे जीवन में दुख प्राप्त करते हैं। ब्राह्मण ही भगवान और भक्त के बीच की अहम कड़ी है। ब्राह्मण ही सही विधि से पूजन आदि कर्म करवाते हैं। शास्त्रों का ज्ञान प्रसारित करते हैं। दुखों को दूर करने और सुखी जीवन प्राप्त करने के उपाय बताते हैं। अत: ब्राह्मणों का सदैव सम्मान करना चाहिए।

इस श्लोक में गौ यानी गाय का भी महत्व बताया गया है। जिन घरों में गाय होती है, वहां सभी देवी-देवता वास करते हैं। गाय से प्राप्त होने वाले दूध, मूत्र और गोबर पवित्र और स्वास्थ्यवर्धक हैं। ये बात विज्ञान भी स्वीकार कर चुका है कि गोमूत्र के नियमित सेवन से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी में भी राहत मिल सकती है। यदि गाय का पालन नहीं कर सकते हैं तो किसी गोशाला में अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार धन का दान किया जा सकता है।



राधे कृष्णा
                                                                                                                                              

वर्तमान समय मे श्रीमद भागवत गीता की उपयोगिता

    भागवत गीता

वर्तमान समय मे श्रीमद भागवत गीता की उपयोगिता 

अच्छाई और बुराइ सर्वथा से ही इस संसार मे रही है। सतयुग जिस समय भगवान राम थे उस समय भी उन्हे रावण रूपी बुराई का सामना करना पढ़ा था। अध्यात्म या ईश्वर का मार्ग हमे सदैव यह प्रेरणा देते रहे है की बुराई कही पर भी हो हमे उसका विरोध करना चाहिए। लेकिन याद रखे हर व्यक्ति का अपना एक सामर्थ्य होता है। और हमे उसी अनुरूप कार्य करना चाहिए। आप अपने सामर्थ्य के अनुरूप हर बुराई का विरोध कर सकते है। परंतु सदैव ही अपने विवेक और बुद्धि का प्रयोग करे। बुराई कही भी हो सकती है, समाज मे, अपनो मे या अपने आप मे कही भी। कही भी हो परंतु हर जगह आपका यह कर्तव्य बनता है की आप उससे लड़े। डटकर लढ़े। किन्तु कभी आप अपने अहंकार या भावनात्मक लगाव के कारण अपने आप को अच्छाई की राह से ना हटाये और अपने अंदर की बुराई से हार ना जाए। आज देश इस परिस्थिति मे है की उसे हर क्षेत्र मे अर्जुन चाहिए। जो अपने कर्मो को हर स्तर पर पूरी निपुणता से निभाए। आज आप अर्जुन है, आप वो अर्जुन है, जो शिक्षक भी है, इंजीनियर भी है, चिकित्सक भी है और एक मजदूर भी है। आज का हर अर्जुन अपने आप मे एक विधा लिए हुए है। बात समझने भर की है । हर इंसान मे अनेकों अच्छाईया और बुराई होती है। परंतु हमारा सदैव यह प्रयत्न होना चाहिए की हम उन बुराइयों से दूर होते जाये। हमारे पास वो महान ग्रंथ भगवत गीता है जो खुद को पवित्र बनाना सिखाता है। यह सासवत सत्य है की हम जीतने ज्यादा पवित्र होंगे उतना हम अपने अंदर की बुराइयों को हराते जायेंगे। आज देश बहुत ही विषम परिस्ताथियों से गुजर रहा है। जीवन के हर क्षेत्र मे हमे ना जाने कितने कौरवो और कंस से सामना करना पढ़ रहा है। इनका कुछ न कुछ भाग हमारे अंदर भी है। हम अपने आप मे अर्जुन भी है तो कही ना कही हम मे दुर्योधन भी छुपा है। हमारे अंदर छुपा दुर्योधन आज इस देश के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। क्या किया जाय, अब समय आ गया है की अपने अंदर छुपे इस दुर्योधन को और अपने समाज मे उपस्थित कौरवो की सेना के विरुद्ध खड़ा हुआ जाये, लढा जाये। लढने का अर्थ हिंसा नहीं है। लड़ने से तात्पर्य यह है की ईश्वर की कृपा से जिस भी कर्म का निष्पादन करने आपको मिला है आप उसे पूरी निष्ठा और लगन से करे। जिस प्रकार अर्जुन धनुर्विद्या मे निपुण एक क्षत्रिय थे, तथा भगवान कृष्ण ने उन्हे अपने कर्म को करने कहा उसी प्रकार आप भी अर्जुन है, आप भी किसी ना किसी विधा मे निपुण है, तो आपका भी यह कर्तव्य बनता है की आप उस विधा का प्रयोग भलीभाँति करे। यदि आप एक मजदूर है, एक बाबू है, एक सिपाही है, जो भी है यह आपको ईश्वर द्वारा प्रदत्त कर्म करने का अवसर है। यदि आप इसे नहीं कर पायेंगे तो, आप को इस संसार मे कही ना कही अपयश का सामना करना पढ़ेगा। हमे अपने कर्म को लेकर किसी भी प्रकार से विवश होने की आवश्यकता नहीं है। जब अर्जुन अधर्म के विरुद्ध युद्ध मे भावुक होकर निर्बल होने लगे तो श्रीकृष्ण उनसे कहते है, जो की अध्याय दो के विभिन्न श्लोको मे वर्णित है:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि

 भावार्थ : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो॥
कर्म मे कितनी शक्ति होती है आपको नहीं पता। एक व्यक्ति का कर्म पूरे विश्व को सकारात्मक ऊर्जा दे सकता है नहीं तो उसे नकारात्मक ऊर्जा से बर्बाद भी कर सकता है। कर्म की शक्ति के कुछ उदारन आपको देता हु। थॉमस अल्वा एडीसन ने कर्म किया था एक बल्ब बना कर और उसके कर्म का परिणाम आज भी दुनिया को मिल रहा और वर्षो तक मिलता रहेंगा। अल्बर्ट कलमेटे ने बीसीजी टीके जो टीबी के लिए होता है, का आविष्कार फ्रांस मे किया और जिनके कर्मो का परिणाम आज हमारे लिए वरदान है, और जब तक विश्व रहेगा उनका नाम रहेगा। ना जाने कितने ऐसे आविष्कार है जो हमारे लिए वरदान है। आज हमे भी ऐसे ही कर्म की आवश्यकता है, अपने देश के लिए अपने आप के लिए । जो कर्म वैदिक युग मे हमारे ऋषि मुनियो ने किया था और जिसका आज भी हम गुणगान करते है, वही कर्म आज हमे फिर से करना है। आज हमे ऐसा बनने की जरूरत जिसे सिर्फ हमारा वर्तमान नहीं हमारे आने वाले पचासों पीढ़ियो तक याद रखा जाये।
 याद रखिए आज हमारे देश को आपके सकारात्मक और निष्ठावान कर्म की अत्यधिक जरूरत है। ऐसा जरूरी नहीं है की आप जो अपने देश के लिए अपने आप के सुधार के लिए आज प्रयास करेंगे उसका फल आप को आज ही मिल जाये। याद रखिए गीता मे कहा गया।


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राधे कृष्णा

मनुष्य का कर्तव्य

मनुष्य का कर्तव्य
मनुष्य का जन्म चोरसी लाख योनियों में भटकने के  बाद मनुष्य जन्म मिलता है ,मनुष्य का जन्म पशु ,पक्षी की तरह नही है ,पंछी से मनुष्य  तुलना नही किया  है ,क्योकि मनुष्य में सोचने समझने की क्षमता होती है ,ऐसा कोई कार्य नही है जो मनुष्य  कर पाये ,मनष्य एक दानव बन सकता है तो अच्छा इंसान भी बन सकता है। मनुष्य का जीवन उनके कर्मो पर निर्भर होता है।
मनुष्य का यह कर्तव्य होता है के अपने आपको पहचाने की हम कौन है ,
  कर्तव्य एवं  अधिकार
सामान्यत: कर्तव्य शब्द का अभिप्राय उन कार्यों से होता है, जिन्हें करने के लिए व्यक्ति नैतिक रूप से प्रतिबद्ध होता है। इस शब्द से वह बोध होता है कि व्यक्ति किसी कार्य को अपनी इच्छा, अनिच्छा या केवल बाह्य दबाव के कारण नहीं करता है अपितु आंतरिक नैतिक प्ररेणा के ही कारण करता है। अत: कर्तव्य के पार्श्व में सिद्धांत या उद्देश्य के प्ररेणा है। उदहरणार्थ संतान और माता-पिता का परस्पर संबंध, पति-पत्नी का संबध, सत्यभाषण, अस्तेय (चोरी न करना) आदि के पीछे एक सूक्ष्म नैतिक बंधन मात्र है। कर्तव्य शब्द में "कर्म' और "दान' इन दो भावनाओं का सम्मिश्रण है। इस पर नि:स्वार्थता का अस्फुट छाप है। कर्तव्य मानव के किसी कार्य को करने या न करने के उत्तरदायित्व के लिए दूसरा शब्द है। कर्तव्य दो प्रकार के होते हैं- नैतिक तथा कानूनी। नैतिक कर्तव्य वे हैं जिनका संबंध मानवता की नैतिक भावना, अंत:करण की प्रेरणा या उचित कार्य की प्रवृत्ति से होता है। इस श्रेणी के कर्तव्यों का सरंक्षण राज्य द्वारा नहीं होता। यदि मानव इन कर्तव्यों का पालन नहीं करता तो स्वयं उसका अंत:करण उसको धिक्कार सकता है, या समाज उसकी निंदा कर सकता है किंतु राज्य उन्हें इन कर्तव्यों के पालन के लिए बाध्य नहीं कर सकता। सत्यभाषण, संतान संरक्षण, सद्व्यवहार, ये नैतिक कर्तव्य के उदाहरण हैं। कानूनी कर्तव्य वे हैं जिनका पालन न करने पर नागरिक राज्य द्वारा निर्धारित दंड का भागी हो जाता है। इन्हीं कर्तव्यों का अध्ययन राजनीतिक शास्त्र में होता है।
हिंदू राजनीति शास्त्र में अधिकारों का वर्णन नहीं है। उसमें कर्तव्यों का ही उल्लेख हुआ है। कर्तव्य ही नीतिशास्त्र के केंद्र हैं।

अधिकार और कर्तव्य का बड़ा घनिष्ठ संबंध है। वस्तुत: अधिकार और कर्तव्य एक ही पदार्थ के दो पार्श्व हैं। जब हम कहते हैं कि अमुक व्यक्ति का अमुक वस्तु पर अधिकार है, तो इसका दूसरा अर्थ यह भी होता है कि अन्य व्यक्तियों का कर्तव्य है कि उस वस्तु पर अपना अधिकार न समझकर उसपर उस व्यक्ति का ही अधिकार समझें। अत: कर्तव्य और अधिकार सहगामी हैं। जब हम यह समझते हैं कि समाज और राज्य में रहकर हमारे कुछ अधिकार बन जाते हैं तो हमें यह भी समझना चाहिए कि समाज और राज्य में रहते हुए हमारे कुछ कर्तव्य भी हैं। अनिवार्य अधिकारों का अनिवार्य कर्तव्यों से नित्यसंबंध है।
फ्रांस के क्रांतिकारियों ने लोकप्रिय संप्रभुता के सिद्धांत को संसार में प्रसारित किया था। समता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व, ये क्रांतिकारियों के नारे थे ही। जनसाधारण को इनका अभाव खटकता था, इनके बिना जनसाधारण अत्याचार का शिकार बन जाता है। आधुनिक संविधानों ने नागरिकों के मूल अधिकारों की घोषणा के द्वारा उपर्युक्त राजनीतिदर्शन को संपुष्ट किया है। मनुष्य की जन्मजात स्वतंत्रता को मान्यता प्रदान की गई है, स्वतंत्र जीवनयापन के अधिकार और मनुष्यों की समानता को स्वीकार किया है। आज ये सब विचार मानव जीवन और दर्शन के अविभाज्य अंग हैं। आधुनिक संविधान निर्माताओं ने नागरिक के इन मूलअधिकारों को संविधान में घोषित किया है। भारतीय गणतंत्र संविधान ने भी इन्हें महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
सी.डी. बर्न्स की उक्ति है, फ्रांस की क्रांति ने कोई दान नहीं माँगा, उसने मनुष्य के अधिकारों की माँग की। अधिकार ऐसी अनिवार्य परिस्थिति है जो मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है। यह व्यक्ति की माँग है जिसे समाज, राज्य तथा कानून नैतिक मान्यता देते हें और उनकी रक्षा करना अपना परम धर्म समझते हैं। अधिकार वे सामाजिक परिस्थितियाँ तथा अवसर हैं जो मनुष्य के व्यक्तित्व के उच्चतम विकास के लिए आवश्यक होते हैं। इन्हें समाज इसी कारण से स्वीकार करता है और राज्य इसी आशय से इनका सरंक्षण करता है। अधिकार उन कार्यों की स्वतंत्रता का बोध कराता है जो व्यक्ति और समाज दोनों के ही लिए उपयोगी सिद्ध हों।
१७वीं और १८वीं शताब्दी के यूरोपीय राजनीतिज्ञों का यह अटल विश्वास था कि मनुष्य के अधिकार जन्मसिद्ध तथा उनके स्वभाव के अंतर्गत हैं। वे प्राकृतिक अवस्था में, जब समाज की स्थापना नहीं हुई थी तो तब, मनुष्य को प्राप्त थे। एथेंस के महान्‌ विचारक अरस्तू का भी यही विचार था। १७८९ में फ्रांस की क्रांति के उपरांत फ्रांस की राष्ट्रीय सभा ने मानवीय अधिकारों की उद्घोषणा की। जिन मौलिक तत्वों को लेकर फ्रांस ने क्रांति का कदम उठाया था उन्हीं सब तत्वों का समावेश इस घोषणा में किया गया था। इस घोषणा के परिणामस्वरूप ्फ्रांस के समाजिक, राजनीतिक एवं मनोवैज्ञानिक जीवन में और तज्जनित सिद्धांतों में परिवर्तन हुआ। मानवीय अधिकारों की घोषणा का प्रभाव आधुनिक संविधानों पर स्पष्ट ही है। यूरोपीय जीवन, विचार, इतिहास और दर्शन पर इस घोषणा की अमिट छाप है। इस घोषणा से प्रत्येक मनुष्य के लिए स्वतंत्रता, संपत्तिसुरक्षा एवं अत्याचार का विरोध करने के अधिकार को मौलिक अधिकार की मान्यता प्रदान की गई। मानवीय अधिकारों की उद्घोषणा का बड़ा व्यापक प्रभाव रहा है। सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक अर्थात्‌ मनुष्य जीवन से संबंधित सभी क्षेत्रों पर इन विचारों का प्रभाव सुस्पष्ट है। समाजवादी दर्शन ने इन अधिकारों का क्षेत्र और भी विस्तृत कर दिया है। सोवियत संघ ने अपने सामाजिक अधिकारों में इन अधिकारों को प्रमुख स्थान दिया है। सन्‌ १९४६ में जब फ्रांस ने अपने संविधान की रचना की तब इन श्रेष्ठतम अधिकारों को स्थान देते हुए उसने और भी नए सामाजिक अधिकारों का समावेश संविधान की धाराओं में किया। आधुनिकतम सभी संविधानों में इन अधिकारों का समावेश है। नागरिक के मूल अधिकारों में इनकी गणना है। यह जाति और नरनारी की समानता का युग है। नागरिक अधिकारों में इन्हें भी स्थान प्राप्त हो गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इन मानवीय अधिकारों की मनोवैज्ञानिक पृष्ठभूमि पर एक विस्तृत सूची बनाई। नागरिक अधिकारों के संबंध में बदलती हुई समाजिक और राजनीतिक प्रक्रिया की छाप उसपर स्पष्ट है। १० दिसम्बर १९४८ को संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी साधारण सभा में सार्वभौम मानवीय अधिकारों को घोषित किया। यह सूची ४८ सदस्य राज्यों के बहुमत से पारित हुई। मनुष्य जीवन के जितने भी आधुनिक मूल्य हैं उन सारे मूल्यों का समाहार इस सूची में किया गया है।

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राधे कृष्णा





प्याज़ के रुलाने का कारण!


प्याज़ के रुलाने का कारण!

जब भगवान सारी सब्जियों को उनके गुण और सुगंध बांट रहे थे तब प्याज चुपचाप उदास होकर पीछे खड़ी हो गई। सब चले गए प्याज नहीं गई। वहीँ खड़ी रही। तब विष्णुजी ने पूछा, "क्या हुआ तुम क्यों नही जाती?"

तब प्याज रोते हुए बोली, "आपने सबको सुगंध और सुंदरता जैसे गुण दिए पर मुझे बदबू दी। जो मुझे खाएगा उसका मुँह बदबू देगा। मेरे साथ ही यह व्यवहार क्यों?"

तब भगवान को प्याज पर दया आ गई। उन्होने कहा, "मैं तुम्हे अपने शुभ चिन्ह देता हूँ। यदि तुम्हें खड़ा काटा जायेगा तो तुम्हारा रूप शंखाकार होगा और यदि आड़ा काटा गया तो चक्र का रूप होगा। यही नहीं सारी सब्जियों को तुम्हारा साथ लेना होगा, तभी वे स्वादिष्ट लगेंगी और अंत में तुम्हे काटने पर लोगों के वैसे ही आंसू निकलेंगे जैसे आज तुम्हारे निकले हैं। जब जब धरती पर मंहगाई बढ़ेगी तुम सबको रुलाओगी।

दोस्तों इसीलिए प्याज आज इतना रुला रही है उसे वरदान जो प्राप्त है।

परम ज्ञानी गुरु बाबा बकवास नंद के प्रवचनों से साभार!                                                                   Image result for परम ज्ञानी गुरु बाबा बकवास नंद                               Radhe krishna
              

रविवार, 27 सितंबर 2015

मेढ़की का दर्द

मेढ़की  का दर्द

बरसात का मौसम था। आसमान में बादल घिरे हुए थे। पर पानी न होने की वजह से उमस कुछ   ज्यादा  ही बढ़ रही थी। आधी रात होने को होने को आई , मै जैसे- तैसे करवट बदल-बदलकर नींद को अपना अपना बनाने की कोशिश कर रही थी। तभी अचानक मुझे किसी के सिसकने की आवाज सुनाई दी। हाथ में टॉर्च लिए मै बिस्तर उठी और धीरे-धीरे आवाज (सिसकने) की  दिशा की ओर बढ़ी तो देखी की एक मेढ़क कुँए की भीत (दीवार) से दुबककर रो रहा है। 
   उसको रोते देख मैं पूछ बैठी  ,  क्यों रो रहे हो मेढ़क भैया और आपके शरीर पे ये रंग किसने डाला ?
तो वो झुझलाकर बोला , इतना भी नहीं समझ सकी  कि  मै मेढक नहीं मेढकी हूँ। मेरे शरीर पे ये कोई रंग नहीं सिंदूर है और  मेरी ये हालत तुम्हारी ही विरादरी के लोगो ने की है। 
तुम तो अपने बेटे - बेटियों की शादी बड़ी सोच-बुझ के, सुयोग्य वर ढूंढ के बड़े धूम-धाम से करते हो , फिर मेरी शादी एक शराबी मेंढ़क से जबरदस्ती कैसे करवा दीया। क्या वो मेरा ख्याल रख पायेगा ? क्या वो शराबी अपनी शराब के आगे मेरी खुशियो को समझेगा ? और तुम्हे तो ये भी नहीं मालूम की मै  पहले से ही शादी-शुदा हूँ ,मेरे तीन-तीन बच्चे है। क्या होगा उनका?मेरी हालत तो तुमलोगो ने धोबी के कुते जैसी कर दी।  न घर का, न घाट का। 
('दरअसल जब बारिश के दिनों  में बरसात नहीं होती तो कुछ अंधविश्वासी लोग ऐसे फिजूल कदम उठाते है।  उनका मानना होता है कि  मेढक और मेढकी की शादी कराने से बरसात जरूर होती है। ')
                  मेढ़की अपनी शरीर को उलट-पलटकर अपने शरीर पे लगे सिंदूर को गिराने की कोशिस कर रही थी। मैंने उसकी मदद के लिए अपनी हाथ बढ़ानी चाही तो वो फिर गुस्से से भर गई और पूरी ताकत लगाकर बोली -------------------
छूना मत मुझे!    इस धरती पर बुद्धिजीवी प्राणियों में गिनती होती है न तुम्हारी, इतना तो पता है न की हमारी  प्रजाति के जीव अपनी त्वचा से साँस लेते है। मुझे साँस लेने में कितनी परेसानी हो रही है ये तुम क्या जानो। .......
हमरी सांसे छीनकर तुमलोग अपनी ख़ुशी की कामना कैसे कर सकते हो ? अगर खुश ही रहना चाहते हो तो सजाओ इस प्रकृति की खूबसूरती को जो तुम्हारे और हमारे जीने के आधार है। यह कहते -कहते मेढ़की की सांसे रुक गई। यह देखकर मेरी हाथो से टॉर्च छूटकर जमींन पर गिर गया। जिससे टॉर्च का बल्ब टूट गया।
टार्च के बंद होते ही मै चारो तरफ से घने अंधेरो से घिर गई। उन अंधेरो के साथ ऐसा लग रहा था जैसे मानो मेढ़की ये सन्देश दे रही हो की , अगर इस प्रकृति से हम ऐसे ही खेलते रहे तो कल सारी दुनिया ऐसे ही अंधकारमय हो जाएगी।
ये पेड़ -पौधे , फूल कालियाँ , नदी -झील ये जीव-जंतु , खुशिया बाटती ये मदमस्त हवाये। यही इस प्रकृति की सुंदरता है  और यही इसकी संतुलन के आधार। हमें हमेशा इनकी सुरक्षा को तत्पर  रहना चाहिए। 
तो आइये आज से मिलकर कोशिस करे  अपने लिए ,अपनी आने वाली पीढ़ी  लिए ,इस प्रकृति के लिए--- कि हमारी वजह से एक भी पेड़ न कटे बल्कि छोटा हो या बड़ा पर एक पेड़ हो हमारे नाम का। "इतना तो हम सोच ही सकते है की--------------------------
" क्यों काटे इनको इस बेदर्दी से, दर्द इनको भी होता है।
 साँसे इनकी भी रूकती है ,दिल इनका भी रोता है। 
 करके सीना छलनी इनका, क्या हम यहाँ जी पाएंगे।
जो मरेंगे  इनको खंजर , तो हम भी मर जायेंगे।


राधे कृष्णा

शनिवार, 26 सितंबर 2015

उच्च रक्तचाप


१३० \८० से उप्र ऊपर का रक्तचाप ,उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन कहलाता है। 
इसका अर्थ है की धमनियों में उच्च चाप (तनाव )  है। उच्च रक्त चाप का अर्थ यह नाकि है कि अत्यधिक भावनात्कम तनाव हो। भावनात्मक तनाव व दबाव अस्थायी तौर पर रक्त के दब को बढ़ा देते है। 
सामान्यतः रक्तचाप 120 /80 से काम होनी चाहिए।  उच्च रक्त चाप से ह्रदय रोग , गुर्दे की बीमारी , धमनियों का सख्त  हो जाने, आँखे ख़राब होने और मस्तिष्क ख़राब होने का जोखिम बढ़ जाता है। युवाओ में ब्लडप्रेशर की  समस्या का मुख्य कारण उनकी अनियमित जीवन शैली और गलत खान-पान होते है। यदि चक्कर आये,सर दर्द हो, साँस में तकलीफ हो , नींद न आये , शिथिलता रहे, कम मेहनत करने पर साँस पहले और नाक से खून गिरे इत्यादि तो चिकित्सक से  कराये , संभव है ये उच्च रक्तचाप के कारण हो।  उच्च रक्तचाप के कारणों में ; 
चिंता , क्रोध, ईर्ष्या भय आदि मानसिक विकार कई बार , बार-बार या आवश्यकता से  खाना। 
मैदा से बने खाद्य , चीनी , मसाले, तेल-घी , आचार  मिठाइया ,मांस ,चाय , सिगरेट , व शराब आदि का सेवन। 
नियमित खाने में रेशे , कच्चे फल और सलाद आदि का अभाव। 
 श्रम हीन ज़ीवन, व्यायाम का अभाव। 

पेट और पेशाब संबंधी पुरानी बीमारी। 
उच्च रक्त चाप का निदान महत्वपूर्ण है जिससे रक्त चाप को सामान्य करके जटिलताओं को रोकने का प्रयास सम्भव हो। फार्मेकॉजी विभाग ,कोलोन विश्वविद्यालय ,जर्मनी में हुई एक शोध के अनुसार चॉकलेट खाने और काली व हरी चय पिने से रक्तचाप नियत्रण में रहता है।  कनाडा के शोधकर्ताओं रॉस डी. फेल्ड्मैन के अनुसार उच्च रक्त चाप के रोगियों की विशेष देखभाल और जांच  जरूरत होती है ,इससे दिल के दौरे की आशंका एक चौथाई कम हो सकती है वही मस्तिष्काघात की भी संभावना 40 प्रतिशत कम हो सकती है।  
  चिकित्सक के पास जांच हेतु पहुचने के बाद कम से कम पांच मिनट के लिए आराम करने के बाद ही अपना रक्तदाब दिखाए। लम्बा चलने के बाद ,सीढ़ियाँ चढ़ने ,दौड़ने -भागने के तुरंत बाद जांच करने पर रक्तदाब बढ़ा हुआ आता है। यह ध्यान रखना चाहिए की जांच के समय कुर्सी पर आराम से बैठे हो  व पैर जमीन पर रखे हो,तथा बाह और रक्तदाब मापक -यंत्र हृदय जितनी ऊचाई पर होना चाहिए। 
जांच के आधा घंटा पहले से चय ,कॉफी ,कोला ड्रिंक और ध्रूमपान नही पीना चाहिए। इनके सेवन से रक्तदाब अगले  15 से 20 मिनट के लिए बढ़ जाता है।  रक्तदाब मापक - यंत्र के बाहर पर बंधे जानेवाले  कफ की चौड़ाई बाह की मोटाई के अनुसार होनी चाहिए। कफ इतना चौड़ा हो की बाह का लगभग तीन - चौथाई घेरा उसमे आ जाए।  बाह मोती होने पर साधारण कफ से रक्तदाब लेने पर ब्लड प्रेशर की रीडिंग बढ़ी  हुई होगी।  यदि बाह पतली और कफ बड़ा है तो ठीक उल्ट होगा ,रक्तदाब कम नपेगा। रक्तचाप मापने  लिए हमेशा जांचा - परखा यंत्र ही प्रयोग  लाएं। 
कभी रक्तचाप थोड़ा बढ़ा हो , तो तुरंत दवा नही लेनी चाहिए। इससे पूर्व कुछ समय तक अपनी जीवन -शैली में बदलाव लाने  का प्रयास करना चाहिए। इसका असर 3 महीने में दिखाई देगा। इसके लिए प्रथम तो भोजन में सोडियम मात्रा कम करनी चाहिए।  सामान्यतः 10 ग्राम नमक लोग एक दिन में खाते है। इसे कम करके 3 ग्राम तक लाना चाहिए। नमकीन चीजे जैसे दालमोठ ,आचार।,पापड़ का पूर्णतः परहेज करे।  शरीर में ज्यादा सोडियम होने से पानी का जमाव होता है जिससे रक्त आयतन बढ़ जाता है , जिसके कारण रक्तचाप बढ़ जाता है भोजन में पोटेशियम युक्त चीजे बढ़ाये जैसे ताजे फल ,डाब का पानी आदि। डिब्बे में बंद सामग्री का प्रयोग बंद कर दे भोजन में कैल्शियम जैसे दूध में और मैग्नेशियम की मात्रा संतुलित करनी चाहिए। रेशेयुक्त पदार्थो को खूब खाए ,जैसे फलो के छिलके। संतृप्त वसा (मांस, वनस्पति,घी )की मात्रा कम करनी चाहिए। 
इसके साथ ही नियमित व्यायाम करना चाहिए खूब तेज लगातार 30 मिनट पैदल चलना सर्वोत्तम व्यायाम है। योगध्यान प्राणायाम रोज करना चाहिए। यदि धम्रपान करते हो तो बंद कर दे ,वजह संतुलित करना चाहिए। मदिरा पान का सेवन ना करे। .... 

राधे कृष्णा 

रविवार, 20 सितंबर 2015

ऋषि पंचमी का व्रत

ऋषि पंचमी का व्रत 

ब्रह्म पुराण के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पंचमी को सप्त ऋषि पूजन व्रत का विधान  है।  इस इस दिन चारो वर्ण की स्त्रियों को चाहिए क़ि वे यह व्रत करे।  यह व्रत जाने-अनजाने हुए पापों के पक्षालन के लिए स्त्री तथा पुरुष को अवश्य करना चाहिए।  इस दिन  स्नानं करने का विशेष माहात्म्य है। 
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यह व्रत कैसे करे  

प्रातः नदी आदि पर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने। 
तत्पश्चात घर में ही किसी पवित्र स्थान पर पृथ्वी को शुद्ध करके हल्दी से चौकर मंडल (चौक पुरे) बनाये। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना करे।  
इसके बाद गंध , पुष्प , धुप, दीप नैवेध आदि से सप्तर्षियों का पूजन करे। 

तत्पश्चात निम्न मन्त्र से अर्घय दे -
 "कश्यपोत्रिभ्ररव्दाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।  
जमदग्निजमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृता :
दहन्तु पापं में सर्व गृह्रणन्तवर्घयं नमो नमः। ।"   
   
अब व्रत कथा सुनकर आरती कर प्रसाद वितरित करे।  तदप्रान्त आकृष्ट ( बिना बोई हुई ) पृथ्वी में पैदा हुए शकादि का आहार ले। 
इस प्रकार सात वर्ष तक व्रत करके आठवे वर्ष में सप्त ऋषियों की सात मूर्तियां बनवाए। 
तत्पश्चात कलश स्थापन करके यथाविधि पूजन करे। अंत में सात गोदान तथा सात युग्मक-ब्राह्राण भोजन करा कर उनका विसर्जन करे। 


सुविचार

जीवन सौन्दर्य  से भरपूर है।  इसे , महसूस करे, इसे पुरी तरह से जीए और अपने सपनो की पूर्ति के लिए पूरी कोशिश करे।


राधे कृष्णा

 

शनिवार, 19 सितंबर 2015

गृहस्थ भूत  
भूत की कहानी भी सत्य हो सकती है क्याकुछ लोग इसपर सत्यता की मुहर लगाते हैं तो कुछ लोग गढ़ी हुई मान कर रोब जमाते हैं। खैर मैं तो यह मानता हूँ कि अगर भगवान का अस्तित्व है तो भूत-प्रेतों का क्यों नहीं?पर यह भी सही है कि हमें भूत-प्रेत के पचड़े में न पड़ते हुए ऐसी कहानियों को काल्पनिक मानते हुए मनोरंजन के रूप में लेना चाहिए। यानि कोई भी सुनी हुई घटना जब कोई सुनाता है तो वह पूरी तरह से सत्य ही हो यह कहा नहीं जा सकता। हाँ अगर कोई स्वयं पर बीती घटना सुनाता है तो उसकी सत्यता से पूरी तरह से इंकार भी नहीं किया जा सकता। खैर छोड़िए इन बातों कोमेरी कहानियों को आप केवल मनोरंजन के रूप में ही लें। हाँ साथ ही यह भी सत्य है कि मैं केवल मनोरंजन प्रदान करने के लिए कल्पना की धरातल पर इन कहानियों को गढ़ता हूँ और यह भी मानता हूँ कि कहानी तो कही हुई बात ही है जिसे कहानीकार अपनी भाषा शैली में, अपने विचारों को प्रमुखता देते हुए परोसता है पर सत्य कहानियों के अस्तित्व को भी मैं नकार नहीं सकता।
अभी जो कहानी सुनाने जा रहा हूँ, यह एक ऐसे भूत की है जो ट्रक का ड्राइवर था और भेद खुलने के पहले तक हर महीने अपने परिवार को मनीआर्डर भेजता रहता था। हँसी आती है लोगों की कारदस्तानी पर, अरे अगर भूत हर महीने अपने परिवार को मनीआर्डर भेज रहा है तो ऐसे भूत की छान-बीन करके, उसका क्रिया-कर्म करके उसकी आत्मा की शांति के लिए पूजा-पाठ करवाने की क्या आवश्यकता हैउसे इस भूत-प्रेत की योनि से छुटकारा दिलवाने की क्या आवश्यकता है? ऐसे भूत मिलते कहाँ है जो हर महीने अपनों की आर्थिक मदद करते रहेंनहीं पर आवश्यकता है, क्योंकि ये भूत-प्रेत भी किसी के सगे-संबंधी ही होते हैं और कोई भी नहीं चाहता कि उसका कोई अपना मृत्यु के बाद भूत-प्रेत की योनि में भटकता रहे।
हुनेसरजी (नाम बदला हुआ) हमारे जिले के ही रहने वाले थे और शादी-शुदा थे। उनके परिवार में उनके दो छोटे भाई, माता-पिता, पत्नी तथा दो प्यारे बच्चे थे। हुनेसर जी कोलकाता में किसी सेठ के यहाँ ट्रक की ड्राइवरी करते थे। उन्हें ट्रक पर माल लादकर दूर-दूर के शहरों में जाना पड़ता था। वे बहुत ही मेहनती थे और अपना काम पूरी जिम्मेदारी व ईमानदारी से करते थे। उनके कार्यों से उनका सेठ भी बहुत ही खुश था और हर महीने उन्हें अपने साथ लेकर डाकघर जाता था और हजार-बारह सौ उनके घर मनीआर्डर जरूर कराता था। हुनेसरजी की जीवन गाड़ी बहुत ही मजे में चल रही थी। कभी-कभी जब उनको माल लेकर लखनऊ, बनारस आदि आना पड़ता तो वे थोड़ा समय निकालकर घर पर भी आ जाते और घर वालों का हाल-चाल लेने के बाद वापस चले जाते।
एक बार की बात है कि हुनेसरजी रात को करीब दस बजे ट्रक लेकर निकले। उन्हें दिल्ली की ओर जाना था। उनके साथ सामू नामका एक खलाँसी भी था। हुनेसरजी खलाँसी को अपने बेटे जैसा मानते थे और उसे ट्रक चलाना भी सिखाते थे। अब सामू ट्रक चलाने में निपुण भी हो गया था। उस रात सामू ने जिद करके कहा कि आप आराम से सो जाइए तो ट्रक चलाकर मैं ले चलता हूँ। हुनेसरजी ना कहकर ट्रक खुद चलाते हुए निकल पड़े और सामू उनके बगल में बैठा रहा। रात के करीब 1 बजे होंगे और ट्रक एक चौड़ी सड़क पर तेज गति से दौड़ा चला जा रहा था। अचानक हुनेसरजी को पता नहीं क्या हुआ कि वे सड़क किनारे ट्रक रोककर बीड़ी सुलगाकर पीने लगे। बीड़ी पीने के बाद वे सामू से बोले कि मुझे बहुत नींद आ रही है अस्तु मैं सोने जा रहा हूँ। तुम एक काम करो, मजे में (धीरे-धीरे) ट्रक चलाकर ले चलो। सामू तो ट्रक चलाना ही चाहता था, उसने हामी भरकर ट्रक की स्टेरिंग पकड़ ली और धीमी गति से ट्रक को दौड़ाने लगा। लगभग आधे-एक घंटे के बाद जब सामू को लगा कि अब हुनेसरजी गहरी नींद में सो रहे हैं तो उसको मस्ती सूझी। उसने ट्रक की स्पीड बहुत ही तेज कर दी और गुनगुनाते हुए ड्राइबिंग करने लगा। अचानक उसे पीछे से एक और ट्रक आती दिखाई पड़ी। शायद जिसकी स्पीड और भी तेज थी। उसने सोचा कि शायद पीछे से आ रही ट्रक उससे आगे निकलना चाहती है। सामू का भी खून अभी तो एकदम नया था। वह भला ऐसा क्यों होने दे, उसने भी ट्रक का एक्सीलेटर चाँपते हुए ट्रक को और भी तेज दौड़ाने लगा। अरे यह क्या उसने ट्रक की स्पीड इतनी बढ़ा दी कि ट्रक अब उसके काबू से बाहर हो गई। वह कुछ सोंच पाता इससे पहले ही ट्रक सड़क छोड़कर उतर गई और एक पेड़ से टकराकर पूरी तरह से नष्ट हो गई।
इस दुर्घटना में हुनेसरजी तो प्रभु को प्यारे हो गए पर सामू बच गया। उसे कुछ ट्रक चालकों ने पास के अस्पताल में भर्ती कराकर उसके सेठ को सूचना भिजवा दी थी। सामू 4-5 दिन अस्पताल में पड़ा रहा। उसे अपनी गल्ती पर बहुत ही पछतावा हो रहा था। उसकी एक गलती से उसके पिता समान हुनेसरजी को अपनी जान गँवानी पड़ी थी। उसका दिल रो पड़ा था पर अब विधि के विधान के आगे वह कर भी क्या सकता था। उसने तय कर लिया कि अब वह जो भी कमाएगा उसका आधा हुनेसरजी की परिवार को दिया करेगा। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह वापस कोलकाता आ गया। अपने सेठ से मिलकर उसने सारी बात बताई और अपनी गलती पर फूट-फूटकर रोने लगा। सेठ ने उसे समझाते हुए कहा कि अब रोने-धोने से कुछ होने वाला नहीं पर हम अभी हुनेसरजी के परिवार वालों को कुछ बताएँगे नहीं और समय-समय पर उसके परिवार की मदद करते रहेंगे, इसके साथ ही उन्होंने सामू से एक ऐसी बात बताई जिसे सुनकर सामू पूरी तरह से डर गया, उसके रोंगटे खड़े हो गए।
दरअसल सेठ ने सामू को बताया कि हुनेसरजी बराबर बताया करते थे कि मालिक जब भी यहाँ से माल लेकर दिल्ली के लिए निकलता हूँ, तो रात को करीब 1-2 बजे एक सुनसान जगह पर ऐसा लगता है कि कोई ट्रक तेजी से पीछे से आ रहा है और हमें ओवरटेक करने की कोशिश कर रहा है। पीछे देखने पर वह ट्रक दिखाई नहीं देता पर ट्रक के मिरर में वह साफ-साफ ओवरटेक करते हुए दिखता है। कई बार तो मैंने अपने ट्रक को किनारे लगाकर उतर कर देखा तो पीछे कोई ट्रक ही नहीं दिखा। तेजी से आता वह ट्रक केवल रात को ही और वह भी मिरर में ही दिखता है। मालिक इस ट्रक के चक्कर में कई ट्रक वालों का एक्सीडेंट हो गया है। समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों होता हैआगे उस सेठ ने कहा कि मैं हुनेसरजी की बातों को सुन तो लेता था पर उसपर ध्यान नहीं देता था। क्योंकि ऐसे कैसे हो सकता है कि कोई ट्रक होकर भी न होऔर वैसे भी मैं भूत-प्रेत में विश्वास नहीं करता पर तुम्हारी बातें सुनने के बाद पता नहीं क्यों अब मुझे हुनेसरजी की बातों पर विश्वास होने लगा है। सेठ जी के इतना कहते ही सामू को काठ मार गया। वह चाहकर भी चीख नहीं सका। तो क्या पीछे से आ रहा ट्रक कोई भूत-प्रेत थाया कोई भूत ट्रक बनकर ट्रक वालों को चकमा देकर दुर्घटना करा देता था?
खैर समय सबके घाव भर देता है। सेठ भी अपने काम में लग गए और सामू भी। 3 महीना बीतने के बाद एक दिन सेठ ने सामू से कहा कि चलो हुनेसरजी के घर चलकर आते हैं। इस बात को छिपाना ठीक नहीं होगा और साथ ही हुनेसरजी के परिवार की कुछ आर्थिक मदद भी कर देंगे। हुनेसरजी थे तो हर महीने उनके परिवार को मनीआर्डर चला जाता था पर पिछले 3 महीने से मनीआर्डर भी नहीं गया और ना ही कोई पत्र आदि। उनके घर के लोग कहीं परेशान न होंसेठ की बात सुनकर सामू ने कहा कि सेठजी अगले महीने मेरी शादी है। शादी के बाद हम लोग चलेंगे क्योंकि मैंने भी सोच रखा है कि हुनेसरजी के परिवार की मदद करता रहूँगा। इसके बाद सेठ ने कहा कि ठीक है, अगले महीने चलते हैं। मैं चाहता हूँ कि मैं मुनेसरजी के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था भी कर दूँ और साथ ही उनके दोनों भाइयों को यहाँ लाकर कुछ काम-धंधा दिलवा दूँ।
मई का महीना था और दोपहर का समय। कड़ाके की लू चल रही थी। सेठ और सामू पसीने से तर-बतर थे। वे लोग पूछते-पूछते हुनेसरजी के गाँव में आ गए थे। एक आदमी ने हुनेसरजी के घर पर भी उन लोगों को पहुँचा दिया। हुनेसरजी के दरवाजे पर एक नीम का घना पेड़ था, जिसके नीचे चौकी पड़ी हुई थी। सेठ और सामू वहीं बैठ गए। उन लोगों ने हुनेसरजी के परिवार के लिए साड़ी, कपड़ा, मिठाई आदि जो लेकर आए थे, घर में भिजवा दिए। घर से उन्हें पानी (जलपान आदि) पीने के लिए आया। पानी-ओनी पीने के बाद उन दोनों ने हुनेसरजी के पूरे परिवार को यह दुखद घटना सुनाने की सोची। अरे यह कहा, अभी वे लोग कुछ कहने ही वाले थे तभी डाकिए के साइकिल की घंटी ट्रिन-ट्रिन बजती हुई उसी नीम के आगे आकर रुक गई। फिर डाकिए ने हुनेसरजी के पिताजी को जयरम्मी करते हुए मनीआर्डर सौंपा। मनीआर्डर सौंपने के बाद डाकिया चला गया। डाकिए के जाने के बाद हुनेसरजी के पिताजी ने कहा कि जब आप लोग आ ही रहे थे तो फिर हुनेसर को यह पैसे डाक से लगाने की क्या जरूरत थीआप लोगों से हाथ से ही भिजवा दिया होता।
हुनेसरजी के पिता के मुँह से इतना सुनते ही सेठ और सामू दोनों हक्के-बक्के हो गए। सेठ ने थूक घोंटकर हुनेसर के पिताजी से पूछा कि क्या कहा आपने, हुनेसरजी ने मनी आर्डर भेजा है? सेठ की यह बात सुनते ही हुनेसर के पिताजी ने बिना कुछ बोलते हुए 100 के आठ नोट तथा मनीआर्डर वाला छोटा कागज का टुकड़ा जिसपर पता लिखा था सेठ के आगे बढ़ा दिया। सेठ जल्दी-जल्दी उस कागज के टुकड़े को उलट-पुलट कर देखने लगे। उन्हें कुछ भी विश्वास ही नहीं हो रहा था क्योंकि मनीआर्डर के उस कागज पर जो लिखाई थी वह हुनेसरजी की ही थी और वह पैसा उन्होंने पिछले महीने ही उसी डाकघर से लगाया था जहाँ से सेठ और वे बराबर हर महीने पैसा लगाया करते थे। अब तो सेठ एकदम से घबरा गए थे। साथ ही सामू के चेहरे का रंग भी उड़ गया था। उन दोनों को समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है। तभी हुनेसरजी बोल पड़े कि कुछ भी हो पर भगवान ऐसा लड़का सबको दें। हम लोगों की बहुत ही सुध रखता है और हर महीने थोड़ा कम या ज्यादा मनीआर्डर जरूर कर देता है। इतना सुनते ही सामू बोल पड़ा कि काका, क्या पिछले महीने भी हुनेसरजी ने मनीआर्डर किया थाहाँ कहते हुए हुनेसरजी के पिताजी ने कहा कि, अरे भाई, हाँ, हाँ। पिछले महीने तो उसने 12 रुपए भेजे थे। इतना सब सुनने के बाद आप लोग खुद ही सोंच लीजिए कि सेठ और सामू किस परिस्थिति में होंगे।
अचानक सामू अपने आप को रोक न सका और फफक कर रो पड़ा। सेठ से रहा न गया और वे सामू को चुप कराते हुए खुद भी रूआँसू हो गए। हुनेसरजी के परिवार वालों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अचानक ये दोनों रोने क्यों लगे। अब उस नीम के नीचे गाँव के अन्य लोग भी एकत्र हो गए थे। सेठ ने थोड़ी हिम्मत करके सारी बात कह डाली। यह बात सुनते ही वहाँ खड़े लोगों विशेषकर महिलाओं में रोवन-पीटन शुरु हो गया पर अभी भी हुनेसरजी के घर वाले यह मानने को तैयार नहीं थे कि पिछले 4 महीनों से हुनेसरजी नहीं है। अगर हुनेसरजी नहीं है तो इन चार महीनों में जो 3 बार मनीआर्डर आएँ हैं, वह किसने भेजा हैहैंडराइटिंग तो मुनेसर की ही है। अरे इतना ही नहीं दो महीने पहले उसका एक पत्र भी मिला था जिसमें उसने लिखा था कि बाबूजी कुछ जरूरी काम आ जाने के कारण 1 साल तक मैं घर नहीं आ सकता पर मनीआर्डर बराबर भेजता रहूँगा। काफी कुछ सांत्वना के बाद, हुनेसरजी के दुर्घटना की पुलिस द्वारा ली गई कुछ तस्वीरों और डाक्टर की रिपोर्ट के बाद अंततः हुनेसरजी के घर वाले माने कि अब हुनेसरजी नहीं रहे पर वह भी पूरी तरह से नहीं।
गाँव वालों और कुछ हित-नात के कहने-सुनने के बाद हुनेसरजी की अंतिम क्रिया संपन्न की गई। सारे कर्म विधिवत संपादित किए गए। इसके बाद हुनेसर जी के दोनों भाई सेठ के पास कोलकाता चले गए। सेठ ने उन्हें एक कारखाने में अच्छे वेतन पर नौकरी दिलवा दी। इसके साथ ही सेठ हर महीने हुनेसरजी के परिवार के लिए कुछ पैसे मनीआर्डर करता रहा। खैर जो भी पर अभी भी सामू को यकीं नहीं कि उसका पीछा करने वाला ट्रक कोई भूत चला रहा था और मरने के बाद भी हुनेसरजी अपने परिवार को मनीआर्डर करते रहे। खैर अब हुनेसरजी के परिवार को पूरी तरह यकीं हो गया है कि अब हुनेसरजी इस दुनिया में नहीं हैं, क्योंकि अब उनका पत्र-मनीआर्डर आदि भी नहीं आता और इस घटना को भी तो काफी समय हो गए। कैसी लगी यह भूतही कहानीजरूर बताएँ पर हाँ साथ ही इसे केवल मनोरंजन के रूप में लें। आभार। जय बजरंग बली।।

गुरु का महत्व

गुरु का महत्व 
गुरु के महत्व पर संत शिरोमणि तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है -
गुरु बिनु भवनिधि तरई न  कोई। जो बिरचि संकर सम होई।।
भले ही कोई ब्रह्रा ,शंकर के समान क्यों न हो , वह गुरु के बिना भव सागर पार नही कर सकता। धरती के आरम्भ से ही गुरु की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला गया है।
वेदों ,उपनिषदों ,पुराणो ,रामायण ,गीता ,गुरुग्रंथ साहिब आदि सभी धर्मग्रंथो एवं सभी महान संतो और भगवान में कोई अंतर नही है।  संत शिरोमणि तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते है -
बंदउ गुरु पद कंज  कृपा सिंधु नररूप हरी।  महामोह तम पुंज जसु बचन रबिकर निकर। ।
अर्थात गुरु मनुष्य रूप में नारायण ही है। मै उनके चरण कमलों की वंदना करता हु। जैसे सूर्य के निकलने पर अँधेरा नष्ट हो जाता है , वैसे ही उनके वचनो से मोहरूपी अंधकार का नाश हो जाता है।
किसी भी प्रकार की विद्या हो अथवा ज्ञान हो ,उसे किसी दक्ष गुरु से ही सीखना चाहिए।  जप ,तप, यज्ञ,दान आदि में भी गुरु का दिशा निर्देशन जरूरी है की इनकी विधि क्या है ?
अविधिपुरक किए गए सभी शुभ कर्म भी व्यर्थ ही सिद्ध होते है जिनका कोई उचित फल नही मिलता। स्वयं की अहंकार की दृष्टि से किये गए सभी उत्तम मने जाने वाले कर्म भी मनिष्य के पतन का कारण बन जाते है।  भौतिकवाद में भी गुरु की आवश्यकता होती है। सबसे बड़ा तीर्थ तो गुरुदेव ही है जिनकी कृपा से फल अनायास ही प्राप्त हो जाते है गुरुदेव का निवास स्थान शिष्य के लिए तीर्थ स्थल है।
उनका चरणामृत ही गंगा जल है।  वह मोक्ष प्रदान करने वाला है। गुरु से इन सबका फल अनायास ही मिल जाता है ऐसी गुरु की महिमा है।
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तीर्थ गए तो फल एक फल ,संत मिले तो फल चार। सद्गुरु मिले तो अनंत फल, कहे कबीर विचार। ।
मनुष्य का अज्ञान यही है की उसने भौतिक जगत को ही परम सत्य मन लिया है और उसके मूल कारण चेतन को भुला दिया है जबकि सृष्टि की समस्त क्रियाओ का मूल चेतन शक्ति  ही है चेतन मूल तत्व को न मान कर जड़ शक्ति को ही सब कुछ मन लेना अज्ञानता है। इस अज्ञान का नाशकर परमात्मा  का ज्ञान करने वाले गुरु ही होते है। किसी गुरु से ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रथम आवश्यकता समर्पण भाव से ही गुरु का प्रसाद शिष्य को मिलता है।  शिष्य को अपना सर्वस्व श्री गुरु देव के चरणो में समर्पित कर देना चाहिए। ऐसी संदर्भ में यह उल्लेख किया गय्या है की यह तन विष की बेलरी ,और गुरु अमृत की खान ,शीश दिया जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान।
गुरु ज्ञान गुरु से भी अधिक महत्वपूर्ण है।  प्रायरू शिष्य गुरु को मानते है पर उनके संदेशो को नही मानते। इसी कारण उनके जीवन और समाज में अंशांति बनी  रहती   है।
 गुरु के वचनो पर शंका करना शिष्यत्व पर कलंक है।  जिस दिन शिष्य  गुरु को मन्ना शुरू हो जाता है और जिस दिन से उसका उत्थान शुरू हो जाता है और जिस दिन से शिष्य ने गुरु के प्रति सनक करनी शुरू की , उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू शुरू हो जाता है। सद्गुरु एक ऐसी शक्ति है
जो शष्य की सभी प्रकार के  रक्षा करती है। शरणा गत शिष्य के दैहिक ,दैविक ,भौतिक कष्टो को दूर करने एवं उसे बैकुण्ठ धाम में पहुँचाने का दहित्व गुरु का होता है।
आंड अनुभूति का विषय है।  बाहर की वस्तुए सुख दे सकती है किन्तु इससे मानसिक शांति नही मिल सकती। शांति के लिए गुरु चरणो में आत्म समर्पण परम आवश्यक है सदैव गुरुदेव का ध्यान करने से जीव नारायण स्वरूप हो जाता है।  वह कही भी रहता हो, फिर  मुक्त ही है ,ब्रह्रा निराकार है।  इसलिय उसका ध्यांन करना कठिन है। ऐसी स्थिति में सदैव गुरुदेव का ही ध्यान करते रहना चाहिए। गुरुदेव नारायण स्वरूप है।  इसलिय गुरु का नित्य ध्यान करते रहने से जीव नारायणमय हो जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गुरु रूप में शिष्य अर्जुन को यही संदेश दिया था -
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणम व्रज। अहम त्व सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामिम शुच : । । (१८ / ६६ )
अर्थात सभी साधनो को छोड़कर केवल नारायण स्वरूप गुरु की शरणागत हो जाना चाहिए। वे उसके सभी पापो  नाश कर देंगे।  शोक नही करना चाहिए। 
जिनके दर्शन मात्र से मन प्रसन्न होता है , अपने आप धैर्य और शांति आ जाती है , वे परम गुरु है।  जिनकी रंग -रग में ब्रह्रा का तेज व्याप्त है , जिनका मुख मंडल तेजोमय हो चुका है , उनके मुख मंडल से  ऐसी आभा निकलती है की जो भी उनके समीप जाता है वह उस तेज से प्रभावित हुय बिना नही रह सकता।  उस गुरु के शरीर से निकलती वे अदृश्य किरणे समीपवर्ती मनुष्यो  नही अपितु पशु पक्षियों को भी आनंदित एवं मोहित कर देती है। उनके दर्शन मात्र से ही मन में बड़ी प्र्सन्नता व्  अनुभव होता है मन की सम्पूर्ण उव्दिग्नता समाप्त हो जाती है। ऐसे परम  गुरु को ही गुरु बनाना चाहिए। 
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                                                                                                                                        राधे कृष्णा 
जय  श्री कृष्णा
 

ज्ञान की बातें -

ज्ञान की बातें -
१ घर में जूते चप्पल इधर - उधर बिखेरकर या उल्टे करके रखने चहिये, ईससे घर में अशांति उत्पन होती है ।
२ पूजा सुबह भूमि पर आसन बिछाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठकर करनी चाहिए । पूजा का आसन जुट अथवा कुश का हो तो उत्तम है ।
३ पहली रोटी गाय के लिए निकले । इससे देवता भी खुश होते हे और पितरो को शांति मिलती है ।
४ पूजा घर में सदेव जल का कलश भरकर रखे, जो जितना संभव हो, ईशान कोण का हिस्से में हो ।
५ आरती, दीप, पूजा, अग्नि, जैसे पवित्रता के प्रतिक साधनो को फंक मरकर नही बुझाए ।
६ मंदिर में धुप, अगरबत्ती व हवनकुंड की सामग्री दक्षिण पूर्व में रखें अर्थात आग्नेय कोण में ।
७ घर में कभी भी जाले न लगने दें ।
८ घर के मुख्यद्धार  पर दांयी तरफ स्वस्तिक बनाये ।
९ सप्ताह में एक बार अवश्य समुद्री नमक अथवा सेंधा नमक से घर में पोंछा लगाए ।
१० कोशिश करे कि सुबह के प्रकाश की किरणें सबसे पहले आपके पूजाघर तक जरूर पहुंचे ।
११ पूजाघर में अगर कोई प्रितिष्ठित मूर्ति है तो उसकी पूजा हर रोज निश्चित रूप से हो,  ऐसी व्यवस्था करें ।
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राधा किशन