Powered By Blogger

सोमवार, 16 नवंबर 2015

पंचगव्य के घटक

पंचगव्य का प्रत्येक घटक अपने में पूर्ण ,महत्वपूर्ण गुणों से सम्पन्न और चमत्कारित है। :
गाय का दूध (गोदुग्ध) :- गाय के दूध के समान पौष्टिक और संतुलित आहार कोई नही है। इसे अमृत माना जाता है। यह विपाक में मधुर ,शीतल ,वातपित्त शामक ,रक्तविकार नाशक और सेवन हेतु सर्वथा उपयुक्त है।
गाय का दही (गोदधि) :- गाय का दही भी समान रूप से जीवनीय गुणों से भरपूर है। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु  होते है जो भूख को बढ़ाने में सहायता करते है। गाय के दही से बना छाछ पचने में आसान और पित्त का नाश करने वाला है।  दूध का प्रयोग विभिन्न प्रकार से भारतीय संस्कृति में पुरातन काल से होता आ रहा है।
गाय का घी (गोघृत) :-  गाय का घी विशेष रूप से नेत्रों के लिए उपयोगी है। घी का प्रयोग शरीर की शमता को बढ़ाने एवं मानसिक विकास  के लिए किया जाता है इसका सेवन कांतिवर्धक माना जाता है।
 गाय का मूत्र (गोमूत्र):- महर्षि चरक के अनुसार गोमूत्र कटु तीक्ष्ण एवं कषाय होता है। इसके गुणों में उष्णता,राष्युकता ,अग्निदीपक प्रमुख है। गोमूत्र प्लीहा रोगो के निवारण में परम उपयोगी है।  रसायनिक दृष्टि से देखने पर इसमे नाइट्रोजन ,सल्फर ,अमोनिया ,कॉपर, लौह तत्व ,यूरिक एसिड ,यूरिया ,फास्फेट ,सोडियम ,पोटेशियम ,मैगनीज ,कार्बोलिक एसिड ,कैल्सियम,क्लोराइड ,नमक ,विटामिन बी ,ऐ ,डी ,इ , एन्जाम ,लेक्टोज, हिप्पुरिक अम्ल, क्रियेटिनिन, आरम, हाइड्रॉक्साइड, मुख्य रूप से पाये जाते है।  गोमूत्र कफ नाशक, शूल गुल्ला, उदार रोग, नेत्र, रोग, मूत्राशय से रोग, कष्ट, कास, श्वास रोग नाशक, शोथ,यकृत रोग में राम-बन का काम करता है। चिकित्सा में इसका अंतः बाह्य एवं वसित प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है।  यह अनेक पुराने एवं असाध्य रोगों में परम उपयोगी है।  उड़िया मूत्रल, कीटाणु नाशक है पोटेशियम क्षुधावर्धक रोगो में राम बान  का काम करता है।  चिकित्सा में इसका अंत: बाहय एवं वस्ति प्रयोग के रूप में उपयोग किया जाता है । यूरिया मूत्रल ,कीटाणु नाशक है।




Radhekrishna



शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

लगाये जाने वाले पोधे



?kj esa yxk;s tkus okys NksVs ikS/ksa dbZ ikS/ks ,sls gksrs gSaA ftudk vkS"kf/k; egRo gSaA lkFk gh mudk lkSn;Zo/kZu Hkh gSaA vkt ds le; esa LFkku dk vHkko esa izk;% yksx xeys esa gh ikS/ksa yxkrs gSaA ;k ykuW rFkk Mªkbaxरुम esa ltkdj j[k nsrs gSaA

 rqylh dk ikS/kk blh izdkj ,d NksVk ikS/kk gSaA ftlds vkS"k/kh; ,oa vk/;kfRed nksuksa gh egRo gSaA izk;% izR;sd fgUnw ifjokj ds ?kj esa ,d rqylh dk ikS/kk vo'; gSaA bls fnO; ikS/kk ekuk tkrk gSaA ftl LFkku ij rqylh dk ikS/kk gksrk gSA ogka Hkxoku fo".kq dk fuokl gksrk gSaA lkFk gh orkoj.k esa jksx QSykus okys dhVk.kqvksa ,oa gok esa O;Ir fofHkUu fo"kk.kqvksa ds gksus dh laHkkouk Hkh de gksrh gSA rqylh dh ifRr;ksa dsa lssou ls lnhZ] [kklah] ,ythZ] vkfn dh fcekjh Hkh u"V gksrh gSA 

1  rqylh ds ikS/ksa dks ;fn ?kj dh mRrj&iwoZ fn'kk esa j[k fn;k tk;sa rks ml LFkku ij vpy y{eh dk okl gksrk gSaA vFkkZr~ ml ?kj esa vkus okyh y{eh fVdrh gSA 

2  ?kj dh iwohZZ fn'kk esa Qwyksa ds ikS/ks] gjh?kkl] ekSleh ikS/ksa vkfn yxkus ls ml ?kj esa Hk;adj chekfj;ka dk izdksi ugha gksrk gSaA 

3  iku dk ikS/kk, panu] gYnh] fucw vkfn ds ikS/ks Hkh ?kj esa yxk;s tkrs gSaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaA bu ikS/ksa dks Hkh ?kj esa yxk;k tkrk gSaA 

4  ?kj ds pkjks dksuksa dks if'pe&mRrj ds dks.k es j[kus ls ?kj ds lnL;ksa esa vkilh izse c<rk gSA 

5  dSDVl xzqi ds ikS/ksa ftuesa uqdhys dkaVs gksrs gSaa mUgsa ?kj ds vUnj yxkuk okLrq'kkL= ds  vuqlkj mfpr gS 

6  Qyk'k] ukxds'kdj] vfj"V] 'keh vkfn dk ikS/kk ?kj ds chp esa yxkuk 'kqHk gksrk gSA 'keh dk ikS/kk ,sls LFkku ij yxkuk pkfg, tks ?kj ls fudyrs le; nkkfguh vksj iMrk gks 

7  ?kj ds cxhps es ihiy] ccwy,] dVgy vkfn dk ikS/kk yxkuk okLrq'kkL= ds vuqlkj Bhd ugha gSA bu ikS/kksa ds ;qDr ?kj ds vanj ges'kk v'kkafr dk vEckj yxk gh jgrk gSA

बरगद का पेड़ और पीपल के पेड़ हिंदू धर्म में पवित्र माने जाते है। बरगद के पेड़ को घर में नहीं बल्कि मंदिर में लगाना चाहिए।
 तुलसी की पूजा की जाती है तुलसी में कई औषधीय गुण भी हैं। तुलसी का पौधा घर में उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में लगाया जाना चाहिए। इन दिशाओँ में लगाए जाने से तुलसी का पौधा बरकत लाता है।

घर में लक्ष्मी का वास कराते हैं घरेलू पौधे

                                                          राधे कृष्णा


कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य..... ????

कौन थे राजा वीर विक्रमादित्य..... ????
(कुतुबमीनार-राजा विक्रमादित्य द्वारा बनवाया गया …. “”हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र”” है…)
बड़े ही शर्म की बात है कि महाराज विक्रमदित्य के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है, जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था
-----------
उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन , जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य...
बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली ,
-----------
आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमदित्य के कारण अस्तित्व में है
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे
----------
रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया
विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे,
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है
--------------
महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया
उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है
विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे
भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे ।
----------------
हिन्दू कैलंडर भी विक्रमदित्य का स्थापित किया हुआ है
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार , तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है , वे बहुत ही पराक्रमी , बलशाली और बुद्धिमान राजा थे ।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने आते थे ,
विक्रमदित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र के हिसाब से बने होते थे, न्याय , राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर चलता था
विक्रमदित्य का काल राम राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने वाली थी
------------
पर बड़े दुःख की बात है की भारत के सबसे महानतम राजा के बारे में अंग्रेजी मानसिकता के गुलाम शासको के शासनकाल में लिखित इतिहास भारत की जनता को शून्य ज्ञान देता है, कृपया आप शेयर तो करें ताकि देश जान सके कि सोने की चिड़िया वाला देश का राजा कौन था ?
--------
जय हिन्द-वंदे मातरम् ।
                                                राधे कृष्णा